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पंखा रोड

Friday, January 11, 2013

साई

साई बोल मूरख
हाल ही में हमारे क्षेत्र में एक जुलूस निकला- अंग्रेजी बैण्ड बाजों के साथ। आगे एक वाहन में गणेशजी की प्रतिमा, उसके पीछे साई बोल कहती ज्यादा महिलाएं-लड़कियां और कुछ पुरुष फ़िर साई बाबा की प्रतिमा। ऐसे द्रूश्य तमाम बस्तियों में साई के व्यवसाय के प्रचार के रूप में दिखाई दे जाते हैं। यहीं अक्सर ऐसे छोटे-बड़े जुलूस निकलते रहते हैं। हिन्दू धन्य होते हैं कि उन्हें एक और संकटमोचक (?) मिल गया। कारण, साई को राम, कृष्ण, विष्णु, शिव आदि देवताओं के साथ नत्थी कर दिया गया है, जैसे- ॐ साई राम।  इस आशय के तमाम चित्र नेट पर मौजूद हैं। साई महिमा की तमाम कहानियां प्रचलित की गई हैं। कुछ टीवी चैनल भी इस धन्धे में शामिल हैं। फ़िल्म-डॉल्यूमेण्टरी बन गयीं। तमाम ब्लॉग-वेबसाइटें मौजूद हैं। फ़ुटपाथ-जमीनों पर कब्जा कर उसके मन्दिर बनाए जा रहे हैं। यही नहीं लालची लोग हिन्दू मन्दिरों में साई की मूर्तियां स्थापित कर लोगों की अन्ध श्रद्धा से धन्धा बढ़ाने में लगे हुए हैं। साई की मूर्ति मन्दिर में होना एक फ़ैशन का रूप ले चुका है। सनातन धर्म के भजन-कीर्तनों में साई भजन की फ़रमाइश भी उठती है। जमकर महिमामण्डन हो रहा है। हमें मूर्ख बनाया जा रहा है और हम खुशी-खुशी बन भी रहे हैं।















शिरडी के साई
साभार/लिन्क: https://hindurashtra.wordpress.com/2012/04/12/shirdi-sai-baba/
संत वही होता है जो लोगो को भगवान से जोड़े , संत वो होता है जो जनता को भक्तिमार्ग की और ले जाये , संत वो होता है जो समाज मे व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए पहल कर इस साई नाम के मुस्लिम पाखंडी फकीर ने जीवन भर तुम्हारे राम या कृष्ण का नाम तक नहीं लिया और तुम इस साई की काल्पनिक महिमा की कहानियों को पढ़कर इसे भगवान मान रहे हो। कितनी भयावह मूर्खता है ये! महान ज्ञानी ऋषि-मुनियो के वंशज आज इतने मूर्ख और कलुषित बुद्धि के हो गए हैं कि उन्हें भगवान और एक साधारण से मुस्लिम फकीर में फर्क नज़र नहीं आता ? जब आज तक कभी कोई मुस्लिम तुम्हारे शिवलिंग पर दूध या जल चढ़ाने नहीं आया, कभी तुम्हारे हनुमान जी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाने नहीं आया, कभी तुम्हारे विष्णु जी पर तुलसी-दल या असंख्यों मंदिरो में स्थापित मूर्तियों पर पुष्प चढ़ाने नहीं आया तो तुम किस मुंह से सडी़ हुयी लाशों के ऊपर बनी कब्रों,दरगाहों और मजारों पर चादर चढ़ाने पहुच जाते हो? शरम नहीं आती। वो तुम्हारे भगवान को गालिया देते है, निंदा करते है और दिन मे एक दो नहीं पाँच पाँच बार मस्जिद से साफ साफ चिल्लाते हैं कि एकमात्र ईश्वर अल्लाह है और कोई है ही नहीं। तो तुम्हें सुनाई नहीं देता क्या। या फिर तुम्हारी ऐसी कौन सी इच्छा है जो कि हमारे परमकृपालु, दयालु ,भक्तवत्सल भगवान पूरी कर ही नहीं सकते, उसे या तो सड़े हुये मुर्दे की हड्डिया पूरा कर सकती है, या फिर शिरडी मे जन्मा एक मुस्लिम फकीर साई! आखिर जाते क्यों हो? जब तुम्हारी प्यास भगवान रूपी गंगाजल से नहीं बुझ रही तो दरगाह और साई रूपी कुंए के पानी से कैसे बुझ जाएगी? गंगाजल को छोडकर कीचड़ की ओर भागने वाले कितने महामूर्ख होते हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन अंधभक्तों को दुनिया भर के तर्क, तथ्य, प्रमाण तक दे दिये, यहा तक कि श्री कृष्ण भगवान द्वारा गीता में इसी विषय पर कहा गया एक श्लोक तक दिखा दिया पर इन धूर्तों की बुद्धि , कलयुग के पाप ने इतनी कुंठित और प्रदूषित कर दी है कि इन्हे समझ ही नहीं आता। गीता में श्री कृष्ण भगवान जी ने साफ साफ कहा है कि जो जिसे पूजता है वो उसे ही प्राप्त होता है यानि मरे हुये व्यक्तियों को सकाम भाव से पूजने वाला पिशाच योनि को प्राप्त होता है। ये स्वयं श्री कृष्ण ने कहा तो भी इन मूर्खो मे इतनी भी बुद्धि नहीं बची कि समझ जायें कि साई को पूजने वाले मृत्युपर्यंत पिशाच बनकर ही भटकेंगे।
तुम चाहे कितना भी साई-साई चिल्लाओ गला फाड़ फाड़ के, चाहे दरगाहों पर जाकर कितनी भी चादर चढालो, तुम श्री भगवान को तो क्या उनकी कृपा का एक अंश भी प्राप्त नहीं कर सकते। ये सत्य है साई ने ऐसा क्या कर दिया था जो तुम्हारा गला नहीं दुखता उसकी महिमा गाते गाते? अरे पूरा भारत उस समय अंग्रेज़ों के डंडे खा रहा था, साई ने बचाया था क्या? अगर वो भगवान था या संत था तो उसने गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी भारत माता को स्वतन्त्रता दिलाने के लिए क्या किया था? उस समय श्री कृष्ण की प्रिय सर्वदेवमई गोमाताएं काटी जाती थीं उनके ऊपर साई कभी क्यों नहीं बोला? भगवान श्री कृष्ण थे, जब कंस के अनुचर गोमाताओ को ले जाने लगे तो, उन्हें मार कर परलोक पहुंचा दिया था और एक ये साई था कि हजारों गोमाताएं रोज कटती रहीं ये बचाना तो दूर उनके ऊपर कभी बोला तक नहीं? काहे का भगवान या संत था ये ? क्या इस भूमि की सनातनी संतानें इतनी बुद्धिहीन हो गयी हैं कि जिसकी भी काल्पनिक महिमा के गपोड़े सुन ले उसी को भगवान और महान मानकर भेडॉ की तरह उसके पीछे चल देती है? इसमे हमारा नहीं आपका ही फायदा है।  श्रद्धा और अंधश्रद्धा में फर्क होता है, श्रद्धालु बनो, भगवान को चुनो, राम और कृष्ण के बनो, साई के बनाकर सिर्फ भूत प्रेत बनाकर ही भटकोगे ….. जय श्री राम कृष्ण ……… जय सनातन धर्म
साई भक्तों के लिए दस प्रश्न – अगर किसी भी साई भक्त के पास इन दस प्रश्नो का उत्तर हैं तो में भी साई का भक्त बनूँगा और उत्तर नहीं है तो कृपया मेरी फ्रेंड लिस्ट से विदा लेले, सचिन शर्मा को ऐसे मित्रो की आवश्यकता नहीं है चाहे कोई भी हो कोई फालतू की बहस नहीं, कुतर्क नहीं, जिसके पास सभी प्रश्नो का सार्थक जवाब हो उत्तर दे। कोई सुझाव नहीं चाहिए और अगर इनके उत्तर नहीं है या इन्हे पढ़ने के बाद शर्म आए तो भगवान की और बढ़ो, कल्याण होग।
1 – साई को अगर ईश्वर मान बैठे हो अथवा ईश्वर का अवतार मान बैठे हो तो क्यों? आप हिन्दू हैं तो सनातन संस्कृति के किसी भी धर्मग्रंथ में साई महाराज का नाम तक नहीं है। तो धर्मग्रंथों को झूठा साबित करते हुए किस आधार पर साई को भगवान मान लिया? और धर्मग्रंथ कहते हैं कि कलयुग में दो अवतार होने है एक भगवान बुद्ध का हो चुका दूसरा कल्कि नाम से अंतिम चरण में होगा।
2 – अगर साई को संत मानकर पूजा करते हो तो क्यों? क्या जो सिर्फ अच्छा उपदेश दे दे या कुछ चमत्कार दिखा दे वो संत हो जाता है? साई महाराज कभी गोहत्या पर बोले? साई महाराज ने उस समय उपस्थित कौन सी सामाजिक बुराई को खत्म किया या करने का प्रयास किया? ये तो संत का सबसे बड़ा कर्तव्य होता है और फिर संत ही पूजने हैं तो कमी थी क्या ? यह फकीर ही मिला ?
3- अगर सिर्फ दूसरों से सुनकर साई के भक्त बन गए हो तो क्यों? क्या अपने धर्मग्रंथो पर या अपने भगवान पर विश्वास नहीं रहा ?
4 – अगर मनोकामना पूर्ति के लिए साई के भक्त बन गए हो तो तुम्हारी कौन सी ऐसी मनोकामना है जो कि भगत्वतसल भगवान शिवजी या श्री विष्णु जी या कृष्ण जी या राम जी पूरी नहीं कर सकते सिर्फ साई ही कर सकता है? तुम्हारी ऐसी कौन सी मनोकामना है जो कि वैष्णो देवी या हरिद्वार या वृन्दावन या काशी या बाला जी में शीश झुकाने से पूर्ण नहीं होगी वो सिर्फ शिरडी जाकर माथा टेकने से ही पूरी होगी।
5 – तुम्हारे पूर्वज सुबह और शाम श्री राम या कृष्ण या शिव शिव ही बोलते थे फिर तुम क्यों सिर्फ प्रचार को सुनकर बुद्धि को भ्रम में डालकर साई-साई चिल्लाने लगे हो?
6 – अगर भगवान कि पूजा करनी है तो इतने प्यारे,दयालु ,कृपालु भगवान है न तुम्हारे पास फिर साई क्यों ? अगर संतों की पूजा करनी है तो साई से महान ऋषि मुनि हैं न साई ही क्यों?
7 -मुस्लिम अपने धर्म के पक्के होते है अल्लाह के अलावा किसी और की और मुंह भी नहीं करते जब कोई अपना बाप नहीं बदल सकता अथवा अपने बाप कि जगह पर किसी और को नहीं देख सकता तो तुम साई को अपने भगवान की जगह पर देखकर क्यों दुखी या क्रोधित नहीं होते?
8 -अगर सनातन धर्मी हो तो सनातन धर्म में तो कहीं साई है ही नहीं। तो आप खुद को सनातन धर्मी कहलाना पसंद करोगे या धर्मनिरपेक्षी साई भक्त?
9 – आप खुद को राम या कृष्ण या शिव भक्त कहलाने में कम गौरव महसूस करते हैं क्या जो साई भक्त होने का बिल्ला टाँगे फिरते हैं? क्या राम और कृष्ण से प्रेम का क्षय हो गया है?
10 – ॐ साई राम ॐ हमेशा मंत्रों से पहले ही लगाया जाता है अथवा ईश्वर के नाम से पहले साई के नाम के पहले ॐ लगाने का अधिकार कहां से पाया? जय साई राम श्री में शक्ति माता निहित है श्री शक्तिरूपेण शब्द है  जो कि अक्सर भगवान जी के नाम के साथ संयुक्त किया जाता है तो जय श्री राम में से श्री तत्व को हटाकर साई लिख देने में तुम्हें गौरव महसूस होना चाहिए या शर्म आनी चाहिए?
ये जो नीचे फोटो है ऐसे फोटो आजकल चोराहों पर लगाकार भगवान का खुलेआम अपमान और हिन्दुओं को मूर्ख बनाया जा रहा है? मुस्लिम साई के चक्कर में नहीं पड़ते धर्म के पक्के है सिर्फ अल्लाह हिन्दू प्रजाति ही हमेशा मूर्ख क्यो बनती है। 
जय श्री राम! जय सनातन धर्म!!

Monday, October 24, 2011

शुभ दीपावली

दीपावली मंगलमय हो!

Thursday, November 4, 2010

शुभ दीपावली

दिवाली धूम




Friday, April 10, 2009

पानी

पानी रे पानी तेरा रंग देखा
पानी की पहचान बोतल और टैंकरों में सिमटती जा रही है। होना यही है कि जिसके पास पैसा है, पानी उसका। घर से बाहर निकलकर आप बस स्टॉप, बस अड्डा, बाजार, रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डा, शापिंग माल, सिनेमा हाल, सरकारी-गैरसरकारी दफ्तर या जहां कहीं भी जाएं राष्ट्रीय-बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की पानी की बोतलें मिलेंगी या ठंडे पेय की बोतलें। इनके लिए पानी है जिसके लिए आपको अच्छी खासी रकम चुकानी पड़ती है।

फ़ोटो: 500 मिली. की पानी की बोतल मात्र २५ रुपये में!
आजकल पानी एक चर्चा का विषय बन चुका है। पीने योग्य पानी यानी पेय जल को लेकर पूरी दुनिया में चिन्ता पसरी हुई है। कहा यह भी जा रहा है कि अगला विश्व हुआ तो वह पानी को लेकर ही होगा। यह स्थिति तब है जब धरती का लगभग 71 प्रतिशत भाग पानी से भरा हुआ है। गांव हो या शहर सभी जगह पानी की परेशानी दिखाई देती है। पानी को लेकर एक परेशानी उसके प्रदूषित होने से भी है। विश्व के कुल पानी का लगभग 97 प्रतिशत समुद्री पानी है जो पीने लायक नहीं है।
पेय जल के रूप में उपयोग किया जा सकने वाला नदियों, झीलों, तालाबों आदि के अलावा वर्फ के रूप में मौजूद और भूमिगत जल है। सिंचाई में पानी का एक बड़ा भाग प्रयुक्त होता है। इसके अलावा विभिन्न उद्योगों और अनेक अन्य कार्यों में भी काफी मात्रा में पानी काम का उपयोग होता है। पानी और उसके उपयोग-दुरुपयोग के अलावा इसके निरन्तर प्रदूषित होते जाने को लेकर अब अनेक समस्याएं उत्पन्न हो गयी हैं जो विश्व व्यापी हैं। दूसरी बड़ी समस्या है विभिन्न स्थानों पर पानी की उपलब्धता में भारी अन्तर का होना। हमारे देश में भी पानी की असमान उपलब्धता मौजूद है। कहीं पानी अच्छी मात्रा में उपलब्ध है तो कहीं पानी की बेहद कमी है।
गर्मी के मौसम में अधिकांश जल स्रोत सूख जाते हैं। फलस्वरूप जल संकट गहरा जाता है। पानी के बंटवारे को लेकर राज्यों में तकरार शुरू हो जाती है। देश की नदियों को परस्पर जोड़कर जल की असमानता की समस्या का हल निकालने के लिए सन् 1952 में नेशनल वाटर ग्रिड की स्थापना की गयी। पर यह योजना सफल नहीं हो सकी। कुछ साल पहले भी नदियों को जोड़ने की योजना तैयार हुई पर यह भी अभी तक सिरे नहीं चढ़ी है।
अनुमान है कि कुछ समय में ही ऐसी स्थिति हो जाएगी कि विश्व के लगभग 40 देशों में पानी का भारी संकट उत्पन्न हो जाएगा। आज भी हमारे यहां अधिकांश क्षेत्रों में जरूरत से काफी कम मात्रा में लोगों को पानी मिल पा रहा है। गांव हो या शहर कमोवेश एक जैसी ही स्थिति देखने को मिलती है। बढ़ती जनसंख्या और बढ़ती जरूरत के अनुपात में पानी की उपलब्धता घटती जा रही है। बदलते मौसम के मिजाज के लिए लोगों का आचरण भी कम जिम्मेदार नहीं है। बढ़ते प्रदूषण ने समस्या को और बढ़ा दिया है। बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण ने भी नकारात्मक भूमिका ही निभायी है। अधिकांश स्थानों पर बढ़ते जमीनी प्रदूषण के चलते पानी पीने योग्य नहीं रह गया है।
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, कर्नाटक, पंजाब, तमिलनाडु आदि राज्यों के अनेक क्षेत्रों में आज नहीं तो कल जल संकट उत्पन्न होना ही है। नदियों का यह हाल है कि उनमें कारखानों के करोड़ों लीटर दूषित पानी को बहा दिया जाता है। शहर-कस्बों के नाले नदियों में गिर रहे हैं। अनेक नदियां ऐसी हो गयी हैं कि उनका पानी पीने की बात छोड़िए नहाने लायक भी नहीं रह गया है।
पानी की दोषपूर्ण वितरण व्यवस्था, रिसाव आदि के चलते नियमित रूप से काफी बरबादी होती है। वितरण व्यवस्था में सही बदलाव लाकर सुधार करने में खर्च भी काफी होगा। दशकों पुरानी पाइप लाइनों को बदलना आसान काम नहीं है। स्थानीय स्तर पर पानी की व्यवस्था करने के लिए प्रयुक्त होने वाला जमीनी पानी अब जमीन के काफी नीचे पहुंच गया है। जिन स्थनों पर मात्र 1 दशक पहले 40-45 फुट गहराई में पानी उपलब्ध था, वहीं अब लगभग 200 फुट खोदने पर भी पानी नहीं मिलता। यही नहीं गुजरात में कच्छ क्षेत्र में खोदे गये 10 में से 6 नलकूपों में 1200 फुट जमीन के नीचे भी पानी नहीं मिला। अनेक नगरों में स्थानीय प्राशासन द्वारा लगाए गये हैंडपम्प बेकार हो चुके हैं। पानी को लेकर परेशानी लगातार बढ़ती जा रही है। जगह-जगह ट्रेनों और टैंकरों से पानी पहुचाना पड़ रहा है। यही व्यवस्था राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्रों के करीब 128 गांवों के निवासियों के लिए जीवनदायिनी बनी हुई है।
देश के अनेक भाग ऐसे हैं जिनमें कुछ में जल्दी ही और कुछ क्षेत्रों में थोड़े वर्षों में ही पानी की उपलब्धता न के बराबर हो जाएगी। ऐसा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, कर्नाटक, पंजाब, तमिलनाडु आदि राज्यों के अनेक क्षेत्रों में आज नहीं तो कल जल संकट उत्पन्न होना ही है। नदियों का यह हाल है कि उनमें कारखानों के करोड़ों लीटर दूषित पानी को बहा दिया जाता है। शहर-कस्बों के नाले नदियों में गिर रहे हैं। अनेक नदियां ऐसी हो गयी हैं कि उनका पानी पीने की बात छोड़िए नहाने लायक भी नहीं रह गया है। बढ़ती शराब की खपत के कारण अधिक शराब बनायी जाती है। सरकारों को टैक्स मिलता है, निर्माता जमकर धन कमाते हैं। पर शराब निर्माण के दौरान प्रयुक्त हुआ पानी प्रायः पास की नदी में बहा दिया जाता है। यही हाल कपड़ों की रंगाई फैक्टरियों, टैनरिओं और अन्य उद्योगों का है। सिर्फ नियम-कानून बनाने से सब ठीक नहीं हो जाता। उन पर अमल करने-कराने की इच्छाशक्ति भी सम्बन्धित व्यक्तियों में होना जरूरी है।
प्राकृतिक जलस्रोत सूखते जा रहे हैं और नष्ट किये जा रहे हैं। उन स्थानों की ज़मीन का उपयोग रिहायशी और व्यावसायिक गतिविधियों के लिए उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। बहुमंजिले भवन खेतों, जंगलों और हरियाली को निगलते जा रहे हैं। धन्नासेठ और भ्रष्ट लोग सड़क किनारे की और अन्य उपजाऊ जमीन खरीदकर अपना कब्जा किए जा रहे हैं।
पानी की पहचान बोतल और टैंकरों में सिमटती जा रही है। होना यही है कि जिसके पास पैसा है, पानी उसका। घर से बाहर निकलकर आप बस स्टॉप, बस अड्डा, बाजार, रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डा, शापिंग माल, सिनेमा हाल, सरकारी-गैरसरकारी दफ्तर या जहां कहीं भी जाएं राष्ट्रीय-बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की पानी की बोतलें मिलेंगी या ठंडे पेय की बोतलें। इनके लिए पानी है जिसके लिए आपको अच्छी खासी रकम चुकानी पड़ती है। भूल जाइए कि स्थानीय प्रशासन, स्वयंसेवी संस्थाएं और समर्थ लोग आपके लिए प्याऊ बनवाकर मुफ्त पानी उपलब्ध कराकर आपकी प्यास बुझाएंगे। पशु-पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था करने का पुण्य अब कितने लोग कमा रहे हैं, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। बचीखुची प्याऊ भी कुछ समय बाद गायब हो जाएंगी। पानी की बोतल सम्बन्धित कम्पनी के प्रचार से बनी छवि के अनुरूप आपक व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण अंग बनती जा रही है।
आज एक फलताफूलता व्यवसाय है। मोटे मुनाफे को देख इस क्षेत्र में हर लल्लूपंजू कूद पड़ा है। प्रकृति प्रदत्त जल की मुफ्त उपलब्धता आमजन के लिए दूभर होती जा रही है। पानी का व्यवसाय विश्व के लगभग 130 देशों में जमकर हो रहा है। यही नही, झील, तालाब और जमीनी पानी सब इन धंधेबाजों के कब्जे में है और सम्भावना भी यही है कि आने वाले समय में पूरी तरह इन्हीं के कब्जे में हो जाएगा। जल की आपर्ति से अधिक उसकी आवश्यकता है। सम्पन्न लोग विभिन्न कार्यों में पानी की आवश्यकता से कहीं अधिक खपत करते हैं। यह सीधेसीधे पानी का दुरुपयोग है।
पानी का संकट विश्व व्यापी है। इसके लिए जिम्मेदार भी हमारा आचरण ही है। असीम गंदगी फैलाने के बाद नदी-तालाबों की सफाई की ओर ध्यान दिया जा रहा है पर इसमें भी कर्त्तव्य के स्थान पर धंधा शामिल है। सैकड़ों करोड़ के खर्च के बाद भी नतीजा वही ढाक के तीन पात बना रहता है। फिर नयी योजनाएं बनती हैं, कर्ज लिया जाता है पर कुछ उल्लेखनीय नहीं हो पाता। आमजन वोट देने के बाद अपनी भूमिका से निवृत हो जाता है। इसके बाद हमारे जनप्रतिनिधि अपनी भूमिका यदि सही ढंग से निभाएं तो स्थिति में काफी बदलाव आ सकता है। यह सर्वविदित है कि स्वार्थ और धन के लालच से अपने कर्त्तव्य से विचलित होने में कितनी देर लगती है!
सहयात्रा
• टी.सी. चन्दर




Friday, April 11, 2008

झांकी Jhaankee

जहां साइकल के अलावा सब चलता है
Jahaan cycle ke alaawaa sab chalataa hai
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पंखा रोड का साइकल ट्रैक
Pankhaa Road kaa Cycle Track

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

श्री सनातन धर्म महिला समिति,
चाणक्य प्लेस, नयी दिल्ली द्वारा
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव २०१० का
१२वां भव्य आयोजन
आयोजक: श्रीमती मन्जू गोपालन

दीवाली धूम Deewalee Dhoom

कार्टूनपन्ना में देखें

स्लाइड शो

पंखा रोड